यूनिवर्सिटी ऑफ़ विर्जिनिया
' दाग़ ' देहलवी
ग़ज़ल in -आँ
फिरे
राह
से वह यहाँ
आते-आते
अजल
मेरी रही
तू कहाँ आते-आते
। । १ । ।
मुझे याद करने से
मुद्दआ
था
निकल जाये दम
हिचकियाँ
आते-आते
। । २ । ।
कलेजा
मेरे मुँह को आयेगा इक दिन
यूँ ही लब
पे आह-ओ-फ़ुग़ाँ
आते-आते
। । ३ । ।
नतीजा
न
निकला, थके सब पयामी
वहाँ जाते-जाते, यहाँ
आते-आते
। । ४ । ।
नहीं खेल
, ऐ " दाग़ ", यारों
से कह दो
कि आती है उर्दू ज़ुबाँ आते-आते
। । ५ । ।
To unglossed version of ग़ज़ल in आँ
To index of poetry.
To index of मल्हार.
Keyed in 21 Aug 2002. Posted 22 Aug 2002.